ahoi ashtami vrat katha in hindi: अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक गांव में एक समृद्धि और सुखी जीवन बिताने वाली स्त्री रहती थीं। उसका नाम राजमाता था। राजमाता का एक बड़ा सौभाग्यशाली परिवार था। उनके पति राजा विक्रमसेन बड़े समृद्ध और धर्मी राजा थे। राजमाता बड़ी भक्तिभाव से माँ दुर्गा की पूजा करती थीं और उन्हें सब प्रकार से भोग चढ़ाती थीं।
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Ahoi ashtami vrat katha in hindi:
एक बार अस्थायी दुख की वजह से राजमाता के घर में समृद्धि की कमी हो गई। राजा विक्रमसेन के राज्य में आने वाले समय के कारण उन्हें पूर्ण समर्थन नहीं मिला था और वह आयोजन करने में असमर्थ थे। इसके चलते राजमाता ने अपने घर में एक व्रत की रचना की।
व्रत का नाम था अहोई अष्टमी व्रत। यह व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। व्रत की शुरुआत में राजमाता ने गंगा जल से स्नान किया और स्वयं को और अपने परिवार को धर्मिक रीति-रिवाज से युक्त किया। उन्होंने माँ दुर्गा की मूर्ति को सजाकर उसे अर्चना की और चांदी के चक्र द्वारा आरती उतारी। व्रत की कथा सुनने के बाद उन्होंने भगवान विष्णु की पूजा की।
भगवान विष्णु ने राजमाता की भक्ति और समर्पण देखकर उन्हें आशीर्वाद दिया। भगवान ने कहा, “तुम्हारी ईच्छा पूरी होगी और तुम्हारे पति को धन, समृद्धि और शक्ति मिलेगी।” राजमाता ने भगवान का आभारी होते हुए उन्हें प्रणाम किया।
व्रत के दौरान राजमाता के घर में एक अपूर्व घटना हुई। एक छोटे से बच्चे को उसके घर में मिला और उसे अपने आँचल में ले लिया। बच्चे का विशाल खजाना वाले घर से नाम लिया गया। राजमाता ने बच्चे को अपना पुत्र मान लिया और उसे अपने परिवार का हिस्सा समझकर उसका ध्यान रखा।
अहोई अष्टमी के व्रत के बाद से ही राजमाता के घर में समृद्धि और धन की कमी खत्म हो गई और वह फिर से सुख-शांति से भर गए। उसके पति राजा विक्रमसेन को भी राज्य में आर्थिक समृद्धि की प्राप्ति हुई।
इस प्रकार, राजमाता ने अहोई अष्टमी व्रत के द्वारा भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त की और उसके वरदान से अपने जीवन को समृद्ध और सुखी बना लिया। इस व्रत का महत्व और मान्यता से सम्बंधित इसकी शक्ति बहुत अधिक मानी जाती है, और यह हर साल भगवान माँ दुर्गा की आराधना के साथ शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
गौरी और महादेव की कथा
बहुत प्राचीन समय की बात है, एक गांव में एक साध्वी नामक वृद्ध व्रतिनी रहती थी। उनका पति बहुत धनवान था, लेकिन उन्हें वृद्धाश्रम में समय बिताना पसंद नहीं था और उन्हें गांव के अपने घर में रहना अच्छा लगता था।
एक बार अहोई अष्टमी के दिन, उनके पति ने गांव में हर्ष और उल्लास से यह व्रत आयोजित किया। वह आपस में गीत-गाने के साथ महादेव और गौरी की पूजा कर रहे थे।
उस समय, वृद्ध व्रतिनी ने सोचा कि वे भी अपने पति के साथ मिलकर पूजा करेंगी। उन्होंने देवी गौरी को ध्यान में बैठा देखा और भगवान शिव से कहा, “हे महादेव, मुझे भी अपने पति के साथ आपकी पूजा करने का अवसर देने की कृपा करें।”
भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें आशीर्वाद दिया। उन्होंने उन्हें अपने साथ पूजा करने के लिए बुलाया और उन्हें साधुवृत्ति विधान से व्रत करने का उपदेश दिया। इससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो गई और उनका व्रत पूर्ण हो गया।
भागीरथ और गंगा की कथा
बहुत पुराने समय की बात है, एक राजा नामक व्यक्ति राज्य करता था। उसके राज्य में लोगों को पानी की अत्याधिक कमी हो गई थी। उस वक्त भारत में कटे बालों की प्रजा ने उससे नम्रता से आह्वान किया कि वह भगवान शिव के उपासना करें और उनसे नाम्रता से पानी की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।
राजा ने भगवान शिव की उपासना की और उन्हें अपनी प्रार्थना सुनी। भगवान शिव ने उनसे कहा, “तुम्हे गंगा का आगमन करवाने के लिए मुझे विश्वास है।”
भगवान शिव ने भगीरथ को गंगा का आगमन करवाने का अभिमान सुनकर उन्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत करने का उपदेश दिया। भगीरथ ने उनका सर्वांगस्नान करके व्रत आयोजित किया और उन्हें गंगा का आगमन करवाने का अवसर मिल गया।
भृगु और उत्तानपाद की कथा
एक गांव में भृगु नामक व्यक्ति रहता था। उनका एक संतान था, जिसका नाम उत्तानपाद था। उत्तानपाद बहुत सज्जन और धार्मिक व्यक्ति था। एक दिन, वह अहोई अष्टमी के दिन व्रत आयोजित करने के लिए निकल पड़े।
वह व्रत करने के लिए एक साधु महात्मा के पास गए और उनसे व्रत का विधान जानकर उसे आयोजित किया। भगवान ने उनसे प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि उन्हें धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति हो।
धृव की कथा
प्राचीन समय में, एक राजा नामक व्यक्ति राज्य करता था। उनका एक पुत्र था, जिसका नाम धृव था। धृव बहुत धार्मिक और त्यागी व्यक्ति था। एक दिन, वह अहोई अष्टमी के दिन व्रत आयोजित करने के लिए निकल पड़े।
धृव ने अपने व्रत के दिन अश्रम में एक साधु को देखा और उन्हें पूजा करने के लिए नम्रता से प्रार्थना किया। साधु ने धृव को आशीर्वाद दिया कि उन्हें अहोई अष्टमी के दिन महादेव की पूजा करने से सभी संकट दूर होंगे। धृव ने साधु के कथन के अनुसार व्रत किया और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
चन्द्रमा और रोहिणी की कथा
प्राचीन समय में, चन्द्रमा और उनकी पत्नी रोहिणी एक गांव में रहते थे। चन्द्रमा बहुत सज्जन और धार्मिक व्यक्ति थे और उनकी पत्नी रोहिणी भी उनसे बहुत प्रेम करती थी।
एक दिन, रोहिणी ने अहोई अष्टमी के दिन व्रत आयोजित किया और चन्द्रमा को भी उसके साथ मिलकर पूजा करने के लिए निमंत्रण भेजा। चन्द्रमा ने उसकी प्रार्थना सुनी और उन्हें आशीर्वाद दिया कि उन्हें सभी सुख और समृद्धि मिलेगी और उनका व्रत पूर्ण होगा। रोहिणी ने अहोई अष्टमी के दिन व्रत किया और उसकी प्रार्थना से उन्हें सभी कारज सिद्ध हुए।
यहां उपर्युक्त अहोई अष्टमी कथाएं धर्मभक्ति, श्रद्धा और भगवान की कृपा का महत्व समझाती हैं। यह व्रत सम्पूर्ण संतान सुख, समृद्धि, और समस्त संकटों का नाश करने में सहायक होता है। यह व्रत नियमित रूप से आयोजित करने से व्यक्ति की श्रद्धा और भक्ति में वृद्धि होती है और उन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।