Chandra Shekhar Azad का नाम आज हर हिन्दुस्तानी जानता है क्योंकी उनके जिवन बलिदान की वजह से ही अपना देश आजदा हुआ था, चंद्रशेखर आजाद एक बहुत बड़े क्रन्तिकारी थे और उनका जन्म आदिवासी ग्राम भाबरा में 23 जुलाई, 1906 हुआ था।
शुरु से ही वो एक बड़े देश भक्त रहे थे, जिस प्रकार तात्या टोपे, झाँसी की रानी, Maharana Pratap जैसे महँ क्रांतिकारियों ने देश के लिए बलिदान किया था उसी प्रकार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में Chandra Shekhar Azad का बहुत बड़ा योगदान दिया था।
उन्होंने जब अंग्रेजो द्वारा 15 कोडो की सजा सुनाई गयी तो वो हर कोड़े के मारने के बाद जवाब वन्दे मातरम बोले, कहने का मतलब उनके अंदर देश भक्ति का इतना बड़ा जज्बा था जो कोडो की की इतनी मार से भी नहीं बदला और अंग्रेजो के सामने जब वो कैद थे उस समय वन्दे मातरम के नारे लगाये उस समय उनकी उम्र केवल 14 वर्ष ही थी। चलिए Chandra Shekhar Azad in Hindi में जानते है उनके महँ जीवन की कुच्छ यादगार पहलू।
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चंद्रशेखर आजाद जीवन परिचय chandra shekhar azad बायोग्राफी
आजाद 23 जुलाई, 1906 को एक आदिवासी ग्राम भाबरा में जन्मे थे, उनकी माता का नाम मां जगरानी तथा उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी जो उतर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के एक छोटे से गाव बदर में रहते थे।Chandra Shekhar Azad ने कासी में संकृत की शिक्षा प्राप्त की।
चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता थे। उन्होंने भारत की आजादी के लिए बहुत संघर्ष किया था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महत्वपूर्ण नेताओं में से एक थे।
उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसा के माध्यम से संघर्ष किया था और इसके लिए उन्हें “आजाद” के नाम से जाना जाता है। वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण अध्यक्ष थे और उन्होंने आजाद हिंद फोज की स्थापना की थी। उनकी मृत्यु 22 फरवरी, 1951 को हुई थी।
उन्होंने देश कार्न्ति के अहम् अध्याय साण्डर्स की हत्या और काकोरी ट्रेन डकैती में मुख्य योगदान दिया। जिवन के शुरुआती दोर में ही उन्होंने भील मित्रो से धनुज बाण चलाना सिख लिया था और वो इसमें महारथ हासिल कर चुके थे।
नाम आजाद पिता का नाम जेलखाना
1921 में असहयोग आंदोलन जो गांधीजी के द्वारा चलाया जा रहा था उन्होंने मात्र चोदह साल की आयु में असहयोग आंदोलन में भाग लिया, जब उनको अंग्रेज सरकार के द्वारा पकड़ कर मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया गया था उन्होंने अपना नाम आजाद बताता और पिता का नाम जेलखाना बताया।
तब वो 14 साल के ही थे इसलिए उनको काराग्रह में न डालकर १५ कोड़े लगाने की सजा मिली, लेकिन वहा भी उन्होंने देश भक्ति की अलख जगाई, जब अंग्रेज अफसर एक कोड़ा मारते वो जवाब में आज़ाद वन्देमातरम का नारा लगाते।
इसी तरह १५ कोड़े मारे गए और उन्होंने वन्दे मातरम के नारे लगाकर जवाब दिया। इस घटना के बाद वो बहुत प्रसिद्ध हो गए और देश की क्रांति के लिए एक बहुत बड़ा सन्देश लाये। उसके बाद उनका नाम आजाद के नाम से पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गया।
Chandra Shekhar Azad क्रन्तिकारी जीवन
इसके बाद उन्होंने अपना जीवन देश क लिए अर्पित कर दिया, अब उनका खाली एक ही मकशद था की कैसे भी करके देश को आजाद कराया जाये।
उसी समय जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया गया तब chandra shekhar azad को बड़ी ठेश पहुची।
परन्तु उन्होंने कर्न्तिकारी का काम चालू रखा। वो हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन क्रांतिकारी दल के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल से मिले और बिस्मिल उनके क्रन्तिकारी काम से बहुत प्रभावित हुए, उसके बाद काकोरी कांड किया जिसमे अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ क्रांतिकारियों को फासी की सजा दी गयी, इसके बाद वो भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु से मिले।
चंद्रशेखर आज़ाद का आत्म-बलिदान
फरवरी 1931 में जब चंद्रशेखर आज़ाद को एक गणेश शंकर विद्यार्थी ने इलाहाबाद जाकर जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात करने को कहा। इसके बाद चंद्रशेखर आज़ाद जवाहर लाल नेहरू से मिलने इलाहाबाद चले गए,
लेकिन वहा नेहरु जी ने उनसे बात करने की मना कर दी और वो वहा से गुस्सा होकर चले गए, इसके बाद जब chandra shekhar azad एल्फ्रेड पार्क में जाकर बेठे और अपने सह क्रन्तिकारी सुखदेव और राज गुरु से बात कर रहे थे तो अंग्रेज पुलिस ने उनको घेर लिया।
और उन पर अन्धाधुन गोलिया चलाने लग गए, Chandra Shekhar Azad ने उनका पूरी तरह डट कर सामना किया और वहां से बाकी क्रिन्तिकरियो को वहा से कसीस प्रकार भगा दिया, जब उसनके पास पूरी गोलिया खत्म हो गयी थी तब लास्ट में जब एक गोली बची तो उन्होंने अपने आपको वो गोली मार दी,
उनका प्रण था की वो जीते जी अंग्रेजो के हाथ नहीं आयंगे। इस प्रकार 27 फरवरी 1931को उन्होंने देश को आजाद करवाते करवाते शहीद हो गए। जब ये बात दुसरे क्रांतिकारियों को मालूम चली तो देश में एक क्रांतिकारियों की लहर चल गयी और अंग्रेजो के नाक में दम करने लगी।
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चंद्रशेखर आजाद का नारा क्या है?
चंद्रशेखर आजाद का नारा है “जय हिंद” और “इंकलाब जिंदाबाद”।
चंद्रशेखर ने देश के लिए क्या किया?
चंद्रशेखर आजाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। वह नेतृत्व करते हुए भारत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष करते रहे। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए जीवन का समर्पण किया और अंग्रेज सरकार के खिलाफ बहुत सारी आंदोलनों और निर्णयों में भाग लिया। 1947 में भारत की आजादी के बाद उन्हें आजाद हिंद सरकार के कैबिनेट में मंत्री बनाया गया।
अंतिम पक्तिया
आजाद साहब के इस जिवन परिचय को अपने बाल बच्चों और मित्रो के साथ जरुर शेयर करे क्योंकी ये एक बहुत शिक्षाप्रद कहानी है, मिलते रहिये और भी देश भक्तो की रोचक जानकारियो के बलिदान को जानने क लिए अपने अगले पोस्ट में।
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