हरतालिका तीज कथा – कर्ण की पत्नी की भक्ति
प्राचीन काल में एक विद्वान ब्राह्मण के घर उसकी पत्नी नामकी एक धर्मपत्नी रहती थी। नाम की बहुत धार्मिक और सती श्री की भक्त थीं। एक दिन, भगवान सूर्य देवता की कृपा से उन्हें एक पुत्र हुआ, जिसका नाम कर्ण रखा गया।
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Hartalika Teej Katha in Hindi
कर्ण को बड़े होने पर, वह मां नाम की साथ व्रत का आयोजन करने लगा। मां ने भगवती पार्वती की भक्ति करते हुए उनसे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने का आशीर्वाद मांगा। भगवती पार्वती ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें आशीर्वाद दिया। कर्ण और उसकी मां ने तीज के दिन भगवान शिव-पार्वती की पूजा की और उनकी भक्ति से उन्हें धन्यवाद दिया। इससे कर्ण को भगवान शिव की कृपा प्राप्त हुई और वह बड़े होकर महान योद्धा बना। इस कथा से सीख: भगवान की भक्ति और परिश्रम से सफलता मिलती है।
हरतालिका तीज कथा – व्रत करने वाली राजकुमारी
प्राचीन काल में एक राजा राजसिंह नामक धर्मिक और न्यायप्रिय राजा थे। उनकी पुत्री नाम की अत्यंत सुंदरी और सदया स्वभाव की थी। की का जीवन खुशियों से भरा हुआ था, लेकिन उन्हें अभिलाषा थी कि वह भगवती पार्वती की भक्ति करें और उनसे अपने अच्छे वरदान की प्राप्ति करें।
एक दिन, की ने अपनी सबसे अच्छी मित्रा की सलाह स्वीकार करते हुए हरतालिका तीज का व्रत आयोजित किया। उसने व्रत के दौरान भगवती पार्वती की पूजा की और उनसे अपने अच्छे वरदान की प्रार्थना की।
भगवती पार्वती ने की की प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें आशीर्वाद दिया। की ने व्रत के अंत में भगवान शिव-पार्वती की कृपा प्राप्त की और उसे अपने पति के रूप में स्वीकार किया।
इस प्रकार, की ने हरतालिका तीज के द्वारा भगवती पार्वती और भगवान शिव को प्राप्त किया और उनके अच्छे वरदान की प्राप्ति की। इस कथा से सीख: भगवती की भक्ति से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
हरतालिका तीज कथा – महिषासुर वध
प्राचीन काल में एक राजा धर्मिक और न्यायप्रिय राजा थे। उनकी पुत्री नाम की बहुत सुंदर और सदया स्वभाव की थी। की का जीवन खुशियों से भरा हुआ था, लेकिन उन्हें अभिलाषा थी कि वह भगवती पार्वती की भक्ति करें और उनसे अपने अच्छे वरदान की प्राप्ति करें।
एक दिन, की ने अपनी सबसे अच्छी मित्रा की सलाह स्वीकार करते हुए हरतालिका तीज का व्रत आयोजित किया। उसने व्रत के दौरान भगवती पार्वती की पूजा की और उनसे अपने अच्छे वरदान की प्रार्थना की।
भगवती पार्वती ने की की प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें आशीर्वाद दिया। की ने व्रत के अंत में भगवान शिव-पार्वती की कृपा प्राप्त की और उसे अपने पति के रूप में स्वीकार किया।
इस प्रकार, की ने हरतालिका तीज के द्वारा भगवती पार्वती और भगवान शिव को प्राप्त किया और उनके अच्छे वरदान की प्राप्ति की। इस कथा से सीख: भगवती की भक्ति से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
लोहा और सोने की कठपुतली
बहुत पुराने समय की बात है, एक गांव में दो मित्र रहते थे। उनमें एक था लोहे के दलील और दूसरा था सोने का सज्जन। लोहे का दलील बड़ा सख्त और उदार व्यक्ति था, जबकि सोने का सज्जन भले ही सोने के हो, लेकिन अहंकारी और अभिमानी व्यक्ति था।
एक दिन, हरतालिका तीज के अवसर पर गांव के मंदिर में उन्होंने भगवान शिव-पार्वती की पूजा करने का संकल्प लिया। वे एक-दूसरे के साथ आकर्षित होने लगे और उनमें द्वेष उत्पन्न हुआ।
जब वे मंदिर में भगवान शिव-पार्वती की पूजा करने के लिए पहुंचे, भगवान ने उन्हें देखा और उनके आक्रोश को देखते हुए उन्हें दो मणियों की कठपुतली बना दिया। एक मणि लोहे की और दूसरी सोने की थी। दोनों दोस्त बड़े आश्चर्यचकित हुए।
उन्हें यह समझ में आया कि भगवान ने उन्हें समझाने का संदेश दिया है कि सोने और लोहे के मणि एक समान मूल्यवान हैं, और अभिमान और अहंकार से दूर रहकर वे दोनों सज्जनता और मित्रता के मार्ग पर चलें। इस घटना के बाद दोनों मित्र आत्मनिर्भरता और सम्मान से जीवन जीने लगे।
धर्मराज और दुष्ट बाणकेशव
एक गांव में धर्मराज नामक एक साधू रहते थे। वह बहुत धार्मिक और न्यायप्रिय व्यक्ति थे और लोग उन्हें बहुत सम्मान करते थे। एक दिन, दुष्ट बाणकेशव नामक व्यक्ति ने धर्मराज की बुराई करने का प्रयास किया। वह उन्हें धूमिल करने के लिए बहुत सारे आरोप लगा रहा था। लेकिन धर्मराज ने शांति और सच्चाई से उनके सारे आरोपों का सामना किया और उन्हें सबूतों के साथ खंडित किया। इससे दुष्ट बाणकेशव बहुत खीज हुआ।
एक दिन, दुष्ट बाणकेशव ने हरतालिका तीज के अवसर पर मंदिर में धर्मराज की प्रतिमा को दूध से सिंचकर उसे सिर्सका मूर्ति बना दिया। लोग धर्मराज को दूध से सिंची हुई प्रतिमा को देखकर हैरान हो गए। धर्मराज ने इस दुर्व्यवहार को देखकर उसे समझाने का प्रयास किया और उसे बुराई से दूर रखने का संदेश दिया। धर्मराज ने कहा कि हरतालिका तीज के दिन सभी लोगों को अच्छे काम करने का संकल्प लेना चाहिए और बुराई का त्याग करना चाहिए। इससे दुष्ट बाणकेशव बदल गया और धर्मराज की शिष्य बन गया।
हरतालिका तीज के व्रत कथा
एक दिन, भगवान विष्णु की देवी लक्ष्मी ने उनसे पूछा, “आपके भक्ति भाव से मोहित होकर किसे वरदान दूं?” भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, “हे देवी, मुझे भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होने वाले मेरे दोनों भक्तों की मांग पूरी कर दो।”
भगवान विष्णु की प्रार्थना स्वीकार करते हुए देवी लक्ष्मी ने उन्हें वरदान दिया कि हरतालिका तीज के दिन, जो कोई भी निष्काम भक्ति और समर्पण से मेरी पूजा करेगा, उसके विधवा संतान को धन्यवाद देने और संतुष्ट करने की क्षमता मिलेगी।
प्रहलाद और हरतालिका तीज
प्राचीन समय में, एक राजा नामक प्रभु राज करता था, जिसके पुत्र का नाम प्रहलाद था। प्रहलाद भगवान विष्णु के भक्त थे और उनके पुत्र होने के कारण राजा उनसे बहुत खुश थे। लेकिन राजा की धार्मिकता नहीं थी और उन्होंने अपने पुत्र के विरुद्ध शास्त्रीय शिक्षा और भगवान विष्णु की पूजा करने से मना कर दिया।
प्रहलाद ने अपने पिता के विरुद्ध भीषण संघर्ष किया और भगवान विष्णु की भक्ति करना नहीं छोड़ा। राजा ने दुष्ट होकर प्रहलाद को अनेक विधि से परेशान करने का प्रयास किया, लेकिन प्रहलाद की भक्ति का कोई असर नहीं हुआ। अन्ततः, राजा की बहन हरतीका ने अपने भक्ति और समर्पण से भगवान विष्णु की पूजा करने का संकल्प किया। उन्होंने प्रहलाद की सहायता से हरतालिका तीज का व्रत आयोजित किया और उसकी पूजा की। भगवान विष्णु ने उनकी पूजा को स्वीकार करते हुए प्रहलाद की प्रत्युत्तर में उन्हें वरदान दिया कि हरतालिका तीज के दिन, जो कोई भी निष्काम भक्ति और समर्पण से भगवान की पूजा करेगा, उसके आशीर्वाद से उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
पार्वती की भक्ति
एक गांव में एक साध्वी रहती थी जिसका नाम पार्वती था। वह भगवान शिव की भक्त थी और हरतालिका तीज के दिन व्रत रखती थी। उसकी भक्ति और तपस्या ने भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और उन्होंने उसे दर्शन दिया। भगवान शिव ने पार्वती को आशीर्वाद दिया कि हरतालिका तीज के दिन जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा भाव से व्रत करेगी, उसके भविष्य में सुख-शांति की प्राप्ति होगी और उसकी पति की लंबी उम्र होगी।
इन Hartalika Teej कथाओं से हमें धर्मभक्ति, समर्पण, सज्जनता, सहानुभूति और भगवान की कृपा का महत्व समझने को मिलता है। इन कथाओं का संदेश है कि अच्छे कर्म करने, सज्जनता और धार्मिकता से जीवन जीने से हमारी जिंदगी में सुख-शांति आती है। हरतालिका तीज के इस पवित्र पर्व पर यही संदेश है कि हम सभी भगवान की भक्ति और सेवा के माध्यम से अपने जीवन को समृद्ध, सुखी और शांतिपूर्ण बना सकते हैं।