Best 3 Hindi Kavita and Poems 2023

दोस्तों कविताये स्कूल लाइफ से लेकर बुदापे तक सभी को पसंद आती है क्योकि इनके बोल ही कुछ खाश होते है जो दिल को छू जाते है. में यहाँ आपके समक्ष Hindi poems की कुछ अद्भुत रचनाये पेश कर रहा हु जिसे श्री मान निलय उपाध्याय जी ने अपने विचारो के साथ लिखा है.

हिंदी कविता भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हिंदी कविता की शुरुआत भारत में वेदों और उपनिषदों के समय से हो गई थी। इसके बाद भारत के विभिन्न भागों में नए-नए शैलियों की उत्पत्ति हुई और भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का उद्घाटन किया गया।

हिंदी कविता में विभिन्न विषयों पर लिखा जाता है, जैसे कि प्रेम, दोस्ती, देशभक्ति, विरह, व्यथा, समाज और जीवन के अन्य पहलुओं पर। हिंदी कविता के अनेक शैलियों में शामिल हैं, जैसे कि दोहे, छंद, ग़ज़ल, नज़्म, भजन, कुछ अलग तरीके की कविताएँ और अन्य।

भारत में अनेक प्रसिद्ध कवियों ने हिंदी कविता को एक अलग पहचान दी है, जैसे कि गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, रहीम देहलवी, कबीर दास, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन और अन्य। हिंदी कविता आज भी भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है

Hindi Kavita and Poem

Best 3 Hindi Kavita and poems

1. खेती नहीं करने वाला किसान

खेती नहीं करने से चलता है अब..

खेती करने वालों का काम

खेती नहीं करने वाला किसान

सबसे पहले उखाड़ता है , दरवाजे पर धंसा खूंटा

तोड़ता है नाद और बैल बेचकर चुकाता है

महाजन का कर्ज

खेत को पट्टे पर लगाते ,

अनाज खरीदते वह जोड़ लेता है साल भर के

खर्च का हिसाब..इस तरह उसके रक्त से निकलती है

जाने कब से घात लगाकर बैठी

हताशा

मुर्गे की पहली बांग के साथ

वह जागता है और बैलों की जगह सायकिल निकालता है

पोछता है हैंडल , कैरियर में टिफिन दबा ट्यूब की हवा का

अनुमान करता है और निकल जाता है

शहर ले जाने वाली सड़क पर

सड़क के

दोनों और पसरे खेत उसे नहीं दीखते

उसे नहीं दिखाई देते फसलों पर टंगे ओस -कण

उसे नहीं सुनाई देती चिड़ियों की चह चह ,

उसे सनाई देती है..देर से पहुंचने

ऒर जरा जरा सी बात पर मालिक की डांट

काम से हटा देने का धमकी

कान पर

वह कसकर लपेटता है गुलबंद

फेफड़े की पूरी ताकत से मारता हॆ पैडल ,

समय से पहले पहुंचता है और जीवन का मोल देकर

छुपा लेना चाहता है यह राज

कि डूब गई है

डूब गई है..सदियों से खेती के तट पर

बंधी उसकी नाव

कि खेती नहीं करने से चलता है

खेती करने वालों का काम।

2 वडा पाव

स्टील के भगोने मे

उबला हुआ आलू

खुशी से सनकर गोल हो रहा था

काया सवर गयी थी उसकी

उसकी रगो मे नमक का स्वाद था

देह पर मसाले की गन्ध थी

पानी पानी हो चुके बेसन मे लिपट कर उठा तो

क्या शान थी उसकी,लगा जॆसे दुल्हा चला हो

चुल्हे पर चढी कडाही मे

उसके इन्तजार की गरमाहट कम न थी

गलती से एक बून्द पानी क्या गिरी..भभक उठी लपट

भीतर से प्यार हो

तो इन्तजार करने वालो का गुस्सा भी अच्छा लगता हॆ

जाने कितने हाथ गलबहिया बन उठे

ऒर फूट्ने लगे

पोर पोर से खुशियो के बुलबुले

कभी हाल-चाल, कभी गिला-शिकवा,कभी उलाहने

उनके भीतर का सारा गुस्सा हवा मे उड रहा था

कड्वापन की शॆली मे अपनापन स्वाद बनकर उतर रहा था

ऒर उसकी देह पर बेसन की त्वचा आकार ले रही थी

सामने सडक थी, वाहनो की कतार थी

बगल के ठेले पर तली जा रही थी पकॊडिया..

थोडी दूर पर ही थी..तिरछी निगाहो से मुझे घूरती

अपनी द्शहरे वाली रस भरी जलेबी

मगर मॆ तो आज

मुम्बइ आने के बाद से सजो कर

वडा पाव खाने की अपनी इच्छा लेकर खडा था

मुझे बेचॆन देख

दूसरे स्टील के कटोरे मे पडी

धनिया की चटनी मुस्कराइ

मुझे बहुत अच्छा लगा ,उसका इस तरह

मुस्कराना

थोडी देर मे जब यह वडा

रुइ के नरम फाहे से किसी पाव के भीतर

हरी हरी धनिये की चटनी के बिस्तर पर पडा होगा

मिर्च वाली भी होगी साथ..काटूगा जो पहला काटा

भर जाएगा मन…मिट जाएगी भूख आत्मा की

तब शाग्घाइ होगी अपनी मुम्बइ

अरे ये क्या हुआ….

बी एम सी की गाडी क्या रुकी..पकडी गइ पकॊडी

ऒधे मुह गिरी जलेबी..हलवाइ के चेहरे पर घबराहट

तेल की कडाही मे जॆसे तूफान आ गया..मेरा वडा

समुद्र मे डूबते जहाज की तरह गोता खाने लगा

ऒर मॆ जो खडा था वडा पाव खाने के इन्तजार मे

सिपाही का ड्ण्डा खाकर चला आया

3 डेली पसिंजर

महज आधा घंटे की देर ने
जब अलग कर दिया काम से
तो फूटी अकल
और अगले दिन
साथ आई स्टेशन पर सायकिल

गाड़ी आई
तो छतो से जैसे भन भनाकर उड़े बर्रे
ठेला वाले खोमचा वाले और कुली
इस तरह मची ठेलम ठेल ..इस तरह उभरा षोर
कि बैठ गया मन
यकीन हो गया कि अब न होगा जाना

जब जोर आजमा कर चढ़ रहे हो चढ़ने वाले
मुश्किल हो तलवे के लिए जगह
कैसे चढ़ेगी लोहे की देह
कहा मिलेगी जगह

दो डब्बो के बीच की जगह पर टिकी ही थ्ाि नजर
कि पुकार लिया अनजान चेहरो ने

अपरचित और सधे हाथ
खिड़की से बाहर निकले और थाम लिया
कहा मिला था
कभी आदमी के जीवन मे
यह मान

भीतर जाकर देखा तो
बडे मजे में थी
लोहे की महारानी..ठेलम ठेल
धक्का मुक्की ..पसीने की बदबू से दूर
रूमाल के सहारे खिड़की से बंधी
रह रहकर ऐसे बज उठती थी घंटिया
जैसे मुझसे ही कह रही हो कि
खयाल रखना अपना

अब तो
वही जगह बन गई है उनकी
जाम हो गया है हैन्डल और कैरियर मे
लोहे का हूक

डब्बे खाली हो
तब भी वही टंगती है
ट्रेन की गति से चलती है
वह भी डेली पसिंजर है।

उपरोक्त कविताये श्री मान Nilay Upadhyay जी  ने लिखी, उनकी आज्ञा की बिना republish करना मना है.